कृषि क्षेत्र पर भी दिखेगा ग्लोबल वार्मिंग का असर, वर्ष 2080 तक 40 प्रतिशत घट सकती है गेहूं की पैदावार

 

ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव का असर जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ कृषि क्षेत्र पर भी देखा जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग यदि इसी गति से बढ़ती रही तो वर्ष 2080 तक देश में गेहूं की पैदावार में 40 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है। केवल गेहूं की फसल ही नहीं, धान की पैदावार में 30 प्रतिशत और मक्का की फसल में 14 प्रतिशत की कमी आ सकती है। प्रति हेक्टेयर पैदावार घटने और जनसंख्या के साथ-साथ मांग बढ़ने से देश को असंतुलन की स्थिति का सामना भी करना पड़ सकता है। यह अध्ययन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के देहरादून स्थित सेंटर इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिमोट सेंसिंग (आइआइआरएस) के विज्ञानियों ने किया है।

पर्वतीय क्षेत्रों में किया गया अध्ययन

अध्ययन के निष्कर्षों को उत्तरांचल यूनिवर्सिटी में विज्ञान भारती और इसरो के सहयोग से आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी 'आकाश तत्व' के दौरान रविवार को आइआइआरएस के कृषि एवं मृदा विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डा. एनआर पटेल ने साझा किया। डा. पटेल की अगुआई में चार सदस्यीय विज्ञानियों की टीम ने तीन साल तक क्लाइमेट चेंज इंपैक्ट आन एग्रीकल्चर विषय पर सेटेलाइट डाटा के माध्यम से उत्तराखंड के देहरादून समेत हिमाचल व जम्मू-कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्रों पर अध्ययन किया 

ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव 40 प्रतिशत तक बढ़ा

डा. पटेल ने बताया कि अध्ययन का आधार वर्ष 1960 से 2080 के बीच देश में कृषि की दशा और दिशा है। उनकी टीम ने वर्ष 1960 से 1990 तक की अवधि का अध्ययन किया और उस दौरान ग्लोबल वार्मिंग का कृषि क्षेत्र में कितना प्रभाव पड़ा, इसके इंडेक्स भी तैयार किए। इन 30 साल की तुलना में वर्ष 1990 से लेकर 2020 के बीच ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव 30 से 40 प्रतिशत अधिक पाया गया।डा. पटेल के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग का सबसे अधिक प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से कृषि क्षेत्र पर पड़ रहा है। समय पर वर्षा न होना, लंबे समय तक सूखे की स्थिति, असमय भारी वर्षा, पहाड़ी क्षेत्रों में तेजी से उपजाऊ मिट्टी का क्षरण, सिंचाई के लिए समय पर पानी न मिलना, मिट्टी की घटती उर्वरा शक्ति, गेहूं, चावल व मक्की की घटती पैदावार के अन्य वातावरणीय कारक हैं।  

अध्ययन के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव

खेत-खलिहानों में कीट-पतंगों की संख्या में बढ़ोतरी।

रबी, खरीफ व दहलन की पैदावार साल दर साल घट रही है।

सूखे की अवधि बढ़ने लगी है।

ग्रीन हाउस गैस का अधिक उ‌र्त्सजन हो रहा है।

गर्म हवाओं के समय में बढ़ोतरी।

कार्बन डाईआक्साइड का जलवायु में अधिक मात्रा में पाया जाना।

तीन साल तक किया गया अध्ययन

इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिमोट सेंसिंग (आइआइआरएस) ने उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर राज्य के हिमालयी क्षेत्रों में तीन साल तक अध्ययन किया। अध्ययन का माध्यम सेटेलाइट डाटा व फील्ड विजिट पर आधारित था। अध्ययन में यह देखने में आया कि ग्लोबल वार्मिंग का कृषि उपज पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग की गति इसी तरह बढ़ती रही तो आने वाले 40 से 50 साल के बीच देश की प्रमुख फसल गेहूं की पैदावार 40 प्रतिशत कम हो जाएगी।

Suman kumar jha

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