12 एवं 13 दिसंबर को क्रमशः सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट में नगर निकाय चुनाव के मुद्दे पर पुनः होगी सुनवाई

खगड़िया ब्यूरो रिपोर्ट

*अद मद से रद्द भला, या व्याप्त संशय को पूर्णतः समाप्त कर विश्वसनीय तरीके से चुनाव हो – किरण देव यादव*

 *12 एवं 13 दिसंबर को क्रमशः सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट में नगर निकाय चुनाव के मुद्दे पर पुनः होगी सुनवाई*

*भाजपाई केंद्र सरकार के बदले की राजनीति का शिकार ना होने एवं स्वविवेक निष्पक्ष जनहित में निर्णय देने की कोर्ट से अपील*

*अलौली*। बिहार प्रदेश पंच सरपंच संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष सह जिलाध्यक्ष किरण देव यादव ने कहा कि आज जहां एक ओर नगर निकाय चुनाव का नगाड़ा बज चुकी है, धीमी गति से ही चुनाव प्रचार का बिगुल की आवाज तेज हो रही है, प्रत्याशी बेमन से ही जनसंपर्क एवं प्रचार-प्रसार में लग चुकी है ।


वहीं दूसरी ओर 12 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट एवं 13 दिसंबर को हाई कोर्ट में लखीसराय के उप चेयरमैन पद के उम्मीदवार सुरेश प्रसाद के द्वारा दायर जनहित याचिका पर पुनः चुनाव के मद्देनजर सुनवाई होगी, जिसमें चुनाव पर जल्द रोक लगाने की मांग किया गया है, जिससे संशय बरकरार है। संशय समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है। चुनाव पर एवं चुनाव हो जाने के बावजूद परिणाम पर भी लगातार तलवार लटकी हुई है।

ऐसा संभव है कि चुनाव रद्द हो सकती है एवं महाराष्ट्र के तरह बिहार में भी चुनाव परिणाम के बावजूद भी रद्द होने की संभावना बनी हुई है। चुकी कोर्ट ने चुनाव आयोग को ही अवैध ठहरा चुके हैं, तथा अवैध चुनाव आयोग के द्वारा काल्पनिक आंकड़े बाजी के तहत थ्री लेयर जांच सर्वे रिपोर्ट को भी एवं चुनाव की प्रक्रिया को अवैध ठहराया जा चुका है, तो फिर कहने को नियत समय पर चुनाव करने को हरी झंडी दिखाने का क्या औचित्य है ? यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। प्रत्याशी व आमजन में व्याप्त घोर संशय कायम है। संशय का बादल छंटा नहीं है बल्कि घनघोर छाई जा रही है। यदि आज कल में चुनाव को रद्द कर दी जाती है या फिर चुनाव- परिणाम बाद भी रद्द की जाती है तो प्रत्याशियों का आर्थिक मानसिक शारीरिक क्षति एवं बिहार सरकार का विगत खर्च लगभग 6 अरब रुपए एवं आगामी खर्च लगभग चार अरब रुपए, कुल 10 अरब रुपए खर्च का जिम्मेदार कौन होगें ? कोर्ट ने 20 जनवरी 2023 का लंबी तिथि निर्धारित क्यों किए ? यस या नो की त्वरित कार्यवाही क्यों नहीं की ? मामले को अधर में लटकाना कहां तक उचित है ? यह सवाल सुरसा की तरह मुंह फैलाए हैं। बार-बार चुनाव के संदर्भ में डांवाडोल असमंजस उहापोह संशय की स्थिति बनी रहने से निराशा की घोर बादल उमड़ घूमड़ रहा है, चुनाव के प्रति उत्साह दिलचस्पी को धीरे-धीरे समाप्त करने, लोकतंत्र संविधान को मजाक बनाने, आमजनों में चुनाव के प्रति दिलचस्पी कम करने की आदत बनाने, “चुनाव से कोई फायदा नहीं'” आमजन के दिमाग में बैठाने, और अंततः चुनाव को बंद कर देना ही मकसद प्रतीत हो रहा है जो दुर्भाग्यपूर्ण है।

देश बचाओ अभियान के संस्थापक अध्यक्ष किरण देव यादव ने कहा कि ” अद मद से रद्द भला “। कोर्ट त्वरित निष्पक्ष पारदर्शी तौर पर “हां या ना” के रूप में जल्द निर्णय लें, उधेड़बुन में प्रत्याशी एवं जनता को ना रखें, “9 या 6” जो करना है जल्द करें। भाजपाई केंद्र सरकार के इशारे पर कठपुतली मत बने, आम जनों का न्याय एवं कोर्ट पर विश्वास है जिसे कायम रखने की जरूरत है, मामले को पेंडिंग ना रखें, स्पष्ट साफ सुथरा पारदर्शी त्वरित निर्णय जल्द दें। अन्यथा कोर्ट, आमजनता – प्रत्याशी के कोपभाजन का शिकार होंगे। भाजपाई केंद्र सरकार पीठ पीछे पर्दे के पीछे बदले की भावना की राजनीति नहीं करें । आरक्षण लोकतंत्र संविधान को समाप्त करने की साजिश एवं देश को असुरक्षित रखने तथा प्रजातंत्र को राजतंत्र में तब्दील करने की दुस्साहस ना करें। चुंकि भारत विश्व में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। अतः आगामी सत्र में नियम संविधान प्रावधान अनुसार जो करना होगा करेंगे, फिलवक्त स्वविवेक से जनहित देश हित में सही निर्णय लें, राजनीति के शिकार ना हो व्याप्त संशय की स्थिति को समाप्त किया जाए एवं चुनाव विश्वसनीय तरीके से करायें, ताकि आम जनों को न्याय पर भरोसा कायम रहे।

Suman kumar jha

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